yatra

Thursday, May 31, 2018

फरार

मेरी ज़िद्द है
कि वो लम्हें बरामद हों

जिन्हें तेरी ज़मानत पर
रिहा मैंने किया था।

वक़्त के स्याह पन्ने पर
मुचलका था भरा तूने

थी जिस पर गवाही
चाँद तारों रुत हवा और आसमां की

वो लम्हे हो गए हैं गुम
न जाने किस की शै पर

सुमति 






Thursday, May 24, 2018

बुहारता हूँ ...
हर रोज़ ..कुछ ...
शायद
जिंदगी को॥
मगर ... हताश हवाएं
बिखेर देती है ....
कायनात मेरी...

सुमति 

चार साल के थके मांदे

  जाओ सो जाओ

 और 
 अपने जहन   को बिस्तर पर
सोता हुआ छोड़ कर चुपचाप चले आना
 हम तुम्हे आजादी देंगे ख्वाब  
बोने की....... 

वो ख्वाब जो तुमने दिन के  उजाले में  देखे हैं
वो खाव्ब जो  आँखों को गिरवीं रखकर पाले हैं 

वो ख्वाब जो दस्त ब  दस्त बिकते हैं
वो खाव्ब जो चौराहों पे लोग लिखते हैं 

वो ख्वाब जो हुकूमत के  फरमानो में  दाखिल हैं  

वो ख्वाब जो  इमकान ए  सहर पे ज़िंदा हैं 
वो ख्वाब जो हक़ीक़त से शर्मिंदा हैं 
और वो ख्वाब जो इन दिनों हर ओर चस्पा हैं 

हम तुम्हे आजादी देंगे ऐसे सारे  ख्वाब  
बोने की....... 


अगर तम सोचते हो हालिया तस्वीर बदलेगी 
अगर तुम सोचते हो धूप  फिर परबत से निकलेगी 
अगर सूरज के  हिस्से में  कमी तुम  को दिखाई दे 
 बगाबत की मुनादी जो कभी तुम को सुनाई दे 
महज़ ऐतबार तुम अपने ख्वाब  पर करना 

जिसे बोन की     हमने तुम्हें  
आज़ादी बख्शी है 
जिसे बड़े ही फ़क़्र से तुमने कमाया है 
जिसे हम   अक्क्सर 
    मन की बात कहते हैं ।

सुमति 














Wednesday, May 23, 2018

यारा

पता नहीं कहाँ से मिला ये रद्दी  कागज़ का टुकड़ा कब लिखा था वो भी याद नहीं
कुछ लिख कर छोड़ देना पकने के लिए   एक आदत सी है   
कभी कभी पकने की जगह
चीजें सड़  गल भी  जाती हैं ये सोच नहीं पाता  हूँ
यहाँ वहां छूटे फुटकर ख्वाब रद्दी के  भाव भी तो नहीं बिकते बस। ... ये ब्लॉग ही तो है जहाँ चस्पा कर के
 भड़ास निकाल  लेता हूँ  - लीजिये पढ़िए

यारा

खुले जो दिल तो क्या मजा शाम दे गयी यारा
मिला के आँख चिलमन से जाम दे गयी यारा।

मैं खार खार - रहा जब तलक रहा तनहा
तेरी ज़ीस्त जीने का फरमान दे गयी यारा

मेरे  मसाइलों  को मांझे सा उलझा   कर वो
बेकाम सफर  को एक   काम दे गयी यारा

झाँक कर देखा जो      मांझी के  झरोखे से
ज़िन्दगी झंड थी सो झंडू बाम दे गयी यारा  .

सुमति 

Monday, May 21, 2018

तलाश ज़ारी है

एक तलाश एक उम्र भर की तलाश की कोई हुमज़ुबाँ होता कोई ग़मग़ुसार होता , पर मुक़म्मल होती ही नज़र नहीं आती।  एक ज़रा सी चाहत भी पूरी न हो , ज़र  ज़मीन तो नहीं मांगी मैंने।  मांगा तो बस ये था की सुलझ जाऊँ मैं ,कुछ तुम में उलझ कर , पर मगर से परे मरासिम  ही  नामुमकिन सी चीज़ है  दुनिया में  . मसला दर असल तन्हाई का है जुदाई का नहीं और ज़िन्दगी की तपतपाती दोपहर में कहाँ निकल के जॉउ वो भी एक उकताहट भरी परेशानी सर है सो तलाशते से रहना , जहाँ रहना , परेशां रहना  । इक अरसे से ये ही जी का हाल है ।
मुनीर नियाज़ी की एक ग़ज़ल बरबस याद आती है




कुछ अपने जैसे लोग मिलें
इन रंग बिरंगे शहरों में 

कोई अपने जैसी लहर मिले 
इन साँपों जैसी लहरों मेँ 

कोई तेज़ नशीला ज़हर मिले 
इतनी किस्मों के ज़हरों में 

हम भी न घर से बाहर निकले 
इन सूनी दोपहरों में ।

ख़ुदा हाफिज़ ।

Monday, May 7, 2018

Birds of same Feather

सोचा था
कि  एक शाम होगी
'''''
जब ज़िन्दगी की तमाम
मुश्किलात को
तुम से साझा करूँगा

और तुम भी
मेरे बयानात
अपने ज़ेहन में
बड़े सब्र  से दर्ज़ करोगे

कुछ मेरी सुनोगे
कुछ अपनी कहोगे

....... शायद ये भी पाओ
कि पनाह मांगते ये ख़याल ये मसाइल
तुम्हारे दिल में कुछ लम्हों को  ठहर जाएँ

या कि  वे साझा मसाइल हों
जिन्हें हम मिल के  सुलझाएं

या  फिर हो की तुम ये  सोचो
मेरे कुछ गम हलके पड़ जाएँ

मगर तुम्हारी अफ़्सुर्दगी से
ये हो न सका
उस शाम के  इंतज़ार का
अब ये आलम है
की ये इंतज़ार ही एक बचा मसाइल है
की ये इंतज़ार ही एक तनहा मुद्दा है
की ये इंतज़ार ही एक बाकी मुश्किल है
जो पीछे छोड़ दिए है अफ़सुर्दा तमाम मुशकिलात  को
जिन्हे मैं
तुम से
साझा करना चाहता था
किसी शाम।

सुमति

Friday, May 4, 2018

तलाश जारी है 

Birds of the same feather ....

सोचा था
कि  एक शाम होगी
'''''
जब ज़िन्दगी की तमाम
मुश्किलात को
तुम से साझा करूँगा

और तुम भी
मेरे बयानात
अपने ज़ेहन में
बड़े सब्र  से दर्ज़ करोगे

कुछ मेरी सुनोगे
कुछ अपनी कहोगे

....... शायद ये भी पाओ
कि पनाह मांगते ये ख़याल ये मसाइल
तुम्हारे दिल में कुछ लम्हों को  ठहर जाएँ

या कि  वे साझा मसाइल हों
जिन्हें हम मिल के  सुलझाएं

या  फिर हो की तुम ये  सोचो
मेरे कुछ गम हलके पड़ जाएँ

मगर तुम्हारी अफ़्सुर्दगी से
ये हो न सका
उस शाम के  इंतज़ार का
अब ये आलम है
की ये इंतज़ार ही एक बचा मसाइल है
की ये इंतज़ार ही एक तनहा मुद्दा है
की ये इंतज़ार ही एक बाकी मुश्किल है
जो पीछे छोड़ दिए है अफ़सुर्दा तमाम मुशकिलात  को
जिन्हे मैं
तुम से
साझा करना चाहता था
किसी शाम।

सुमति