yatra

Saturday, August 14, 2010

कि अब दुखता बहुत है ...

...कुछ ख्वाब भींच के मुट्टी मैं
दुनिया से छुपाये रखे हैं .....


कुछ घाव मिले हैं तुम से भी
सीने मैं दबाये रखे हैं

हर रात तुम्हारे खाव्बों से

मैं नज़र बचा कर सोता हूँ

फिर नींद जहाँ लेजाती है

फसलें पानी कि बोता हूँ

हर रात तुम्हारी आहट से

ये गुस्ताखी हो जाती है

ठोकर सपनों को लगती है

और नींद वहीँ खुल जाती है

par ....मेरी

धड़कन ... बला सी

बहुत चुप है मगर
तुम ..
ये इतना जान लो कि
गिला चुकता नहीं है ...
......कि अब दुखता बहुत है ....
कि दो बजने को आये
कि दुनियां सो चुकी है
कि मेरी आखें हैं सुनी
कि नींदें खो चुकी हैं
किसे फुर्सत जो देखे
कि साँसें थम रही हैं
ki मेरे रिश्तों कि गर्मी
जो अब -तब जम रही हैं
मेरी खातिर जहा मैं
नहीं afsos कोई
कि sabki अपनी चाहत
..न चाहत मेरी कोई
main सोना ....चाहता था
मगर
अब .......
मैं darata हूँ कहीं ये
मुठ्टी खुल न जाए ...
मेरी चाहत कि दुनियां
डली सी घुल न जाए .....

ये मन chalane से pehle .....कि अब .......रुकता बहुत hai
.....ki ab दुखता bahut hai

सुमति

Friday, August 13, 2010

मुझे दरवेश* कर दे *सन्यासी

न जानू मैं किसी को न कोई मुझ को जाने ...
मेरी हस्स्ती का मतलब
tu आबे रवां * याने..... (* बहता हुआ पानी )
मेरी इल्तजा यही है
तू माने या न माने ....

मुझे दरवेश कर दे ...

तेरी दुनियां अजब है
तेरे फंदे गजब हैं
मैं फंसता जा रहा हूँ
तेरे बन्दे अजब हैं ..
मुझे मिलता नहीं है
kahin कोई ऐसा किनारा
जहाँ मैं बांध कर के अपनी
कश्ती का
saamaan सारा
.......
छोदुं इस जहाँ को
न हो किस्सा दुबारा ॥
मगर ये भी चाहता हूँ
रहें कुछ ऐसे महफूज
कि हों मेरी नज़र में
mera रैआं* बिचारा । * जवानी
.....मगर कब तक कहूँ मैं
दुआ घिस गयी है मेरी
मेरे रिश्ते चुक रहे है
हस्ती मिट रही है meri
मेरे लफ्ज खो गए हैं
मेरी जुबा फिसल रही है
मैं बोलना भी चाहूँ
तो बंदिशें कई हैं
मैंने जिस किसी को chaahaa
उसकी चाह दूसरी है
.......... में परेशां हूँ खुद से
मुझे दरवेश कर दे
मुझे दरवेश कर दे
सुना है लोग ऐसे
तेरी दुनियां में आएं
जिन्हें मिटटी मिली थी
जो तुझ से सोना पाए
मुझे सोना मिला है
मैं mitti मांगता हूँ
मेरे हिस्से कि जन्नत
मैं तुझसे बांटता हूँ
नहीं कहता मैं तुझ से
मुझे परवेज* करदे *famous
मैं तुझ से मांगता हूँ
मुझे दरवेश कर दे.......
मुझे दरवेश कर दे ................................
मुझे दरवेश कर दे

ये मेरी नज्म तमाम उन लोगों के नाम जिनेह मैंने chahaa पर वो चाह कर भी मुझे चाह न सके
...
अच्छा या बुरा
आपका
सुमति