किनारे आ के दुखड़ा रो गए हैं
तल्ख़ दरिया के तेवर हो गए हैं
रात लहरों ने आपा क्या खोया
निसां साहिल के सारे खो गए हैं
जुनूँ शिद्दत दुआएँ आरज़ू आहें
यहाँ तक आते आते सो गए हैं
दाग यूँ तो दामन पर बहुत थे
यार अपने लहू से धो गए हैं
नहीं क़ाबू में मुहब्बत हमने माना
बर्बादी खुद की ही हम बो गए हैं
वापसी उनकी तो मुमकिन नहीं है
हिरन सोने का लेने जो गए हैं
तुम्हारा नाम ले के चल पड़े जो
पत्थर पानी पे बहके वो गए हैं
मिला लो मुझसे अब अपनी हस्ती
मेरे अरमां सारे ख़ुदकुशी को गए हैं
वो जिसका नाम लेकर जागना था
हम उसी का नाम ले कर सो गए हैं
सुमति
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