yatra

Saturday, August 29, 2020

किनारे के दुखड़ा रो गए हैं 

तल्ख़ दरिया के तेवर हो गए हैं 


रात लहरों ने आपा क्या खोया  

निसां साहिल के सारे खो गए हैं 


जुनूँ शिद्दत दुआएँ आरज़ू आहें 

यहाँ तक आते आते सो गए हैं 


दाग यूँ तो दामन पर बहुत थे 

यार अपने लहू से धो गए हैं 


नहीं क़ाबू में मुहब्बत हमने माना 

बर्बादी खुद की ही हम बो गए हैं


वापसी उनकी तो मुमकिन नहीं है

हिरन सोने का लेने जो गए हैं 


तुम्हारा नाम ले के चल पड़े जो 

पत्थर पानी पे बहके वो गए हैं 


मिला लो मुझसे अब अपनी हस्ती 

मेरे अरमां सारे ख़ुदकुशी को गए हैं 


वो जिसका नाम लेकर जागना था 

हम उसी का नाम ले कर सो गए हैं 


सुमति 

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