मेरी बच्ची
मेरी बच्ची
तेरी मुस्कराहट से
मेरी सांसों का रिश्ता है
ये हंसती बोलती आँखें
मुझे जीने को कहती हैं
तुम्हारी बात में जो बे नियाज़ी है (बे परवाही )
वही दरकार है अब मेरे होने की
और
तुम्हारा होना ही मुझको बताता है
कि
अभी भी ये दुनियां मेरा नशेमन (आशियाना )है
है अभी भी
गुलशन में ताबानी (नूर )
कि लर्ज़िश भी इसी से
मुझ पे तारी है
पर मैं डरने लगा हूँ ,तुम
कभी खबरों में मत आना
कभी कहने पे मत जाना
फरेबी ये जहाँ सारा
बहुत मासूम तुम हो .
मैं ये भी जानता हूँ
तुम्हें मुश्किल बहुत होगी
कि
जब रिश्ते रस्ते बदल लेंगे
पर तुम
किसी को हक़ न देना
की तुम्हें वो तोड़ डाले
मेरे जो बस में होता
मैं तुम्हें आँखों में ही रखता
मगर मैं ये भी जानता हूँ
क़फ़स में तुम को जो रक्खा
तो खुद को
माफ़ ही ना कर पाऊंगा मैं
सो
रहो आज़ाद तुम इस जहाँ में
मगर मेहफ़ूज़ ऐसे
कि जैसे
कोई बाद-ऐ -सबा
बहती है फ़िज़ा में
जिसे महसूस तो ये दुनियाँ करले
मगर ..छूने न पाए
सुमति
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