yatra

Saturday, August 29, 2020

तेरे बाद -


मैं तुझे छोड़ कर 

जुड़ता रहा कई नाम से 

ज़िंदगी ले चली मुझे काम से 

मिले रिश्ते कई इफ़रात में

बने ताल्लुकात भी जज़्बात में

मैंने ओहदा दिया  सभी को कुछ 

तलाशा चाहतों को उनमें बहुत ,


मगर लगने लगा है मुझको अब 

मैंने बुन लिया है  एक दाम* को   [जाल]

जिसमें धागे हैं  कई नाम को 

वो मुझे बचाए हैं कि फँसाए हैं 

दिन रात के वो जो साये हैं .

...पर 

चाहतों का जो तू सैलाब था 

तू  मुझे थामे था ,मेरा बचाव था 

मेरा दम घुट रहा है इन दिनो 

क्या सच में कोई मुझे बचाएगा 

क्या तेरे बाद भी तुझसा 

कोई मुझको चाहेगा . 

सुमति 

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