yatra

Friday, May 4, 2018

Birds of the same feather ....

सोचा था
कि  एक शाम होगी
'''''
जब ज़िन्दगी की तमाम
मुश्किलात को
तुम से साझा करूँगा

और तुम भी
मेरे बयानात
अपने ज़ेहन में
बड़े सब्र  से दर्ज़ करोगे

कुछ मेरी सुनोगे
कुछ अपनी कहोगे

....... शायद ये भी पाओ
कि पनाह मांगते ये ख़याल ये मसाइल
तुम्हारे दिल में कुछ लम्हों को  ठहर जाएँ

या कि  वे साझा मसाइल हों
जिन्हें हम मिल के  सुलझाएं

या  फिर हो की तुम ये  सोचो
मेरे कुछ गम हलके पड़ जाएँ

मगर तुम्हारी अफ़्सुर्दगी से
ये हो न सका
उस शाम के  इंतज़ार का
अब ये आलम है
की ये इंतज़ार ही एक बचा मसाइल है
की ये इंतज़ार ही एक तनहा मुद्दा है
की ये इंतज़ार ही एक बाकी मुश्किल है
जो पीछे छोड़ दिए है अफ़सुर्दा तमाम मुशकिलात  को
जिन्हे मैं
तुम से
साझा करना चाहता था
किसी शाम।

सुमति

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