yatra

Friday, October 26, 2018

क़ज़ा

मौत का दिन भी
कैसा दिन होगा 
चल के जाऊंगा उस तक 
या धर दबोचेगी किसी मोड़ पर 
गिरेगी बिजली या 
यूँ ही सांस उखड़ जाएगी 
रूह कांपेगी या ठहर जाएगा ये मन 
आँख में आखरी तस्वीर किसकी होगी 
और जुबान पर वो नाम आखिरी क्या होगा 
आखिरी वक़्त की वो आखरी तमन्ना क्या होगी 
आखिरी लम्हें कितनी देर तक आखिरी होंगे 
इस नाम की क्या कोई पहचान बचेगी 
सूरत राख होने के बाद भी ...

मौत के बाद भी क्या शिकवा बचेगा कोई 
खाली बैठूंगा या करूँगा कारोबार कोई 
या यूँ ही गुम हो जाऊंगा हवाओं मैं 

कोई रिश्ता जुड़ेगा किसी से मिटटी होने के बाद भी 
या यूँ हि निशाँ मिटजायेंगे मिट्टी होते ही 
या हवा होजायेगी पहचान सारी 
वो मौसम क्या होगा 
दिन होगा की रात होगी 
धुप होगी या बरसात होगी 
खारे पानी की 



कुछ भी तो नहीं मालूम 
मालूम है तो बस ये की 
जब मैं आखिरी सांस तक पहुँचूगा 
वो सांस मैं तुम से लूंगा 
आखरी वक़्त मेरे पास तुम होगी 

नहीं मालूम 
मौत का दिन भी कैसा  दिन होगा 
बस इतना मालूम है 
ज़िन्दगी के पहलु मैं मेरी मौत होगी 

सुमति 

Monday, October 1, 2018

तू फ़ना नहीं होगा ये ख़याल झूठा है

एक अक्टूबर ,आज अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस है . शायद ही हम में  से किसी का ध्यान , ज्ञान इस तरफ गया हो . हमें बताया ही नहीं गया और ही हम अपने बच्चों को बता सके की फ्रेन्डिशप डे वेलेंटाइन डे डॉटरस डे  के अलावा ऐसा भी कोई डे है जिसे International older person day कहा जाता है . पिछला एक साल वृद्ध जीर्ण शीर्ण माताओं ,जो महिला कल्याण निगम के आश्रय सदनों मैं निवासरत हैं ,को देखते सुनते गया है . पिछले साल जब इस दिन मैं वृन्दावन के आश्रय सदन में आया था उससे पहले मैं ये ही समझता था की सफेदी की दुनियां में  रहने वालों के ख्वाब ख्याल और तमनाएँ भी सफ़ेद ही हो जाती होंगी . सफ़ेद सूती साडी में लिपटी रहनेवाली उदास मुख माताएं पर जब एक रास नृत्य करने गोपिकाओं के रूप में आयीं तो वे सब जो भी साज श्रृंगार कर सकती हैं किये रंगबिरंगई चुनरी ओढ़े किसी स्कूल के बच्चों की तरह स्टेज पर चढ़ीं और बेहद सजगता से नृत्य करने लगीं और उसके बाद उन 60 से 70 बरस की माताओं ने स्टेज से जाने से पहले मेरे साथ एक फोटो खिचवाने का आग्रह किया तो बस बर बस मेरी आँख भर आयी अपनी सोच समझ पर ग्लानि होने लगी अपने इर्दगिर्द फैले समाज पर खीज आने लगी कि 
क्यों हम  इस सोच के साथ बड़े किये जाते हैं कि बूढ़ा होना सामने वाले बुजुर्ग की नियति है जिस तक हम हमारे बच्चे कभी पहुंचेंगे बूढ़े होंगे . हम तो उन्ही तमन्नाओं मौज मस्ती और रसूख के साथ जियेंगे जिन के साथ आज जी रहे हैं . हमारे इन्वेस्टमेंट एलआईसी पीपीएफ सिप मयूचुअल फण्ड हमारे बच्चे सब सिक्योरिटी देंगे . शरीर बूढ़ा हो जाता है तमन्नाएँ नहीं . और वो पूरी भी हो सकती हैं तब जब हमारा समाज एक माहौल विकसित करे जिसमें नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की बची  खुची zindgi को पुरे उल्लास और उत्साह के साथ बितवाने की ज़िम्मेदारी ले .
ताकि जब हम उस पड़ाव पर पहुंचें ये हमारे बच्चे वो ही सब करें जो उन्होंने हमें हमारे बुजुर्गो के साथ करते देखा है . इस साल मैं वृन्दावन आश्रय सदन नहीं पहुँच पा रहा हूँ सच मानिये बेहद तकलीफ हो रही है . संतोष मिश्रा जी जो हमारे सदन प्रभारी हैं ने वृद्धजन दिवस के आयोजन के लिए कुछ धनराशि चाही थी ,जैसा की सभी आयोजनों में होता है , किन्तु अफ़सोस और ग्लानि है की मैं उनकी कोई मदद नहीं कर सका और ऐसे में मैं व्यक्तिगत रूप से भी आयोजन मैं पहुँचने की हिम्मत नहीं जुटा सका . किन्तु अगले साल जब सरकार की मितव्ययता की बंदिश मेरे ऊपर नहीं होगी तब मैं एक साधारण व्यक्ति की तरह यथा सामार्थ कुछ एक उपहार लिए आप सब के बीच होऊंगा
आप का सदैव् 

सुमति