yatra

Friday, March 20, 2020

अब मैं क्यूँ कुछ काम करूँ

क्या क्या याद रखूं 
और क्या क्या  काम करूं 
मैं तो चुक  जाने की हद पर हूँ
 अब क्यूँ ना आराम करूँ

एक उम्र गुज़री गिरते पड़ते 
एक लम्हा खुद के साथ नहीं 
बस सोच यही थी कुछ चल लूँ 
फिर बैठूँ ,पर आए वो हालात नहीं 

हुई दुपहरी  इतनी लम्बी 
शाम ना आई हाँथ मेरे 
तनहा गुज़रे सारे लम्हे 
गुज़रने थे जो साथ तेरे  

बेगार करूँ याकरूँ बगावत 
सोच नहीं दिल पाता है 
दुःखता है ये रातो दिन, मुकम्म्ल
ख्वाब नहीं हो पाता है
सुमति 



Thursday, March 19, 2020

लिहाज़

लिहाज़ इतना भी मुनासिब नहीं 
कि घुटने लगे दम 
आह दब के सीने में रह जाए
अफ़सोस अपनी बेज़ुबानी पे आए तुम्हें 
और बेहयाई से कोई लूट ले जाए 
सुमति 


मेरी बच्ची




तेरी मुस्कराहट से
मेरी सांसों का रिश्ता है

ये हंसती बोलती आँखें
मुझे जीने को कहती हैं

तुम्हारी बात में जो बे नियाज़ी है (बे परवाही )
वही दरकार है अब मेरे होने की

और

तुम्हारा होना ही मुझको बताता है
कि
अभी भी ये दुनियां मेरा नशेमन (आशियाना )है
है अभी भी
गुलशन में ताबानी (नूर )
कि 
लर्ज़िश भी इसी से मुझ पे तारी है

पर अब 
मैं डरने लगा हूँ ,
तुम कभी खबरों में मत आना 
कभी किसी के कहने पे मत जाना
फरेबी ये जहाँ सारा
बहुत मासूम तुम हो .

मैं ये भी जानता हूँ
तुम्हें मुश्किल बहुत होगी 
कि
जब रिश्ते रस्ते बदल लेंगे
पर तुम
किसी को हक़ न देना
की तुम्हें वो तोड़ डाले

मेरे जो बस में होता
मैं तुम्हें आँखों में ही रखता
मगर मैं ये भी जानता हूँ
क़फ़स में तुम को जो रक्खा
तो खुद को
माफ़ ही ना कर पाऊंगा मैं
सो
रहो आज़ाद तुम इस जहाँ में
मगर मेहफ़ूज़ ऐसे
कि जैसे
कोई बाद-ऐ -सबा
बहती है फ़िज़ा में
जिसे महसूस तो ये दुनियाँ कर ले

मगर ..छूने न पाए

सुमति