yatra

Friday, July 17, 2020

माँ

रवायतें 

कुछ मुख़्तसर सी हिदायतें 

कुछ बेअसर सी कवयातें 

उस पे भी मेरी हाँ है 

क्यूंकि वो जो माँ है 

बड़ी अजीब है .

सुमति 

लिहाज़

लिहाज़ इतना भी मुनासिब नहीं 

कि घुटने लगे दम 

आह दब के सीने में रह जाए

अफ़सोस अपनी बेज़ुबानी पे आए तुम्हें 

और बेहयाई से कोई लूट ले जाए 

सुमति 

 

बारदरी

जेहन की बारादरी में

 उतर के देखो तो 

मिलेंगे दरीचे कई गुमसुम से ,

 हताश कोनो पर बैठे हुए 

कई बुझे अरमां 

और मिलेंगे तमाम 

शिकश्ता उम्मीद के दिये

 वीरान अंधेरों में रोते हुए 

पर मगर 

खिल उठेंगे  फूल फिर दलानो में 

महज़ तुम्हारे पैर रखते ही ..

बस एक बार उतर के देखो तो 

जेहन की बारादरी में 


सुमति 

बधाई दो , दुहाई दो 

मगर मुझको रिहाई दो 

दिखे हैं जख्म दुनिया को 

कभी तुम भी दिखाई दो 

हमें शनासाई ने मिटा डाला

तुम मोहब्बत की सफाई दो 

करोगे किस तरह रुस्वा 

रहम करके बता ही दो 

इलाज हो नहीं जिसका 

भला कर क्यों दवाई दो

मेरे मिसरे पे  मत हँसना 

ख़यालों को  रसाई दो  

सुमति 



नज़र लग गयी

हमें खबर थी तुम्हें खबर थी 

मगर बे खबर जहाँ था सारा 

हुए जो हम बे खबर जहाँ से 

जहाँ को सारे खबर लग गई 


तमाम बंदिश तमाम बातें 

तमाम दिन तक तम्माम रातें 

गुजरनी मुश्किल  तमाम सांसें 

ये कैसी आफत गले लग गयी 

जहाँ को कैसे खबर लग गयी 


वो हमको कब पूंछते थे ऐसे 

हम उनकी नज़र में ही कहाँ थे 

अलम के सारे चिराग रोशन 

की सारी बस्ती ख़ुशी का आलम 

मगर जहाँ को बुरी लग गयी 

ख़ुशी हमारी खुशी तुम्हारी 

नज़र लग गयी 

सुमति 

मशवरा

ज़रा पहले चला होता 

ज़रा पहले मिला होता 

ज़रा पहले कहा होता 

हुआ है जो वो हुआ होता 

यही मुश्क़िल हमारी थी 

मला है हाँथ अक्सर 

रास्तों पर ठोकरें खा कर  

दिखा पहले ज़रा होता 

सुना पहले ज़रा  होता 

जगा पहले ज़रा होता 

मैं ख़ुद ही मोल लेता हूँ 

बालाएं एक से एक उम्मदा 

फिर तुम्हारी ओर तकता हूँ 

किया जो मश्वरा होता 

सुमति 


मौत का दिन

मौत का दिन भी 

कैसा दिन होगा 

चल के जाऊंगा उस तक 

या धर दबोचेगी किसी मोड़ पर 

गिरेगी बिजली या 

यूँ ही सांस उखड़ जाएगी 

रूह कांपेगी या ठहर जाएगा ये मन 

आँख मैं आखरी तस्वीर किसकी होगी 

और जुबान पर वो नाम आखिरी क्या होगा 

आखिरी वक़्त की वो आखरी तमन्ना क्या होगी 

आखिरी लम्हें कितनी देर तक आखिरी होंगे 

और फिर क्या इस नाम की कोई पहचान होगी 

सूरत ख़ाक  होने के बाद ...


मौत के बाद भी क्या शिकवा बचेगा कोई 

खाली बैठूंगा या करूँगा कारोबार कोई 

या यूँ ही गुम हो जाऊंगा हवाओं में मैं 


मौत के बाद भी 


कोई रिश्ता जुड़ेगा भी किसी से मिटटी होने के बाद 

या यूँ हि निशाँ मिटजायेंगे मिट्टी होते ही 

या हवा हो जायेगी पहचान सारी 

वो मौसम क्या होगा 

दिन होगा की रात होगी 

धुप होगी या बरसात होगी 

खारे पानी की 


कुछ भी तो नहीं मालूम 

मालूम है तो बस ये की 

जब मैं आखिरी सांस तक पहुँचूगा 

वो सांस मैं तुम से लूंगा 

आखरी वक़्त मेरे पास तुम होगी 


नहीं मालूम 

मौत का दिन भी कैसा  दिन होगा 

बस इतना मालूम है 

ज़िन्दगी के पहलु में मेरी मौत होगी 

सुमति