yatra

Thursday, July 26, 2018

चल सपनोँ से दूर चल



टूटे हुए दिल
 बिच्छड़े हुए लोग
ग़मज़दा सोहबतों की
बात कर

राहत की उम्मींद न दे
बैचेनियों की
बात कर


आस्तीनों में आँख रख
रोने धोने की
बात कर


भूल जा कोई
मिलने आयेगा
जो है उसे भूलने की
बात कर


जिसने छोड़ा है
यक़ ब यक़ ज़िंदगानी को
उससे न मेहरबानी की
बात कर


वो दौर था
वो जब शोर सा
दौडता था रगों में
चल अब भूल कर वो सब
कज़ा को बुलाने की
बात कर

टूटे हुए दिल
चल बात कर
 सुमति 

Monday, July 23, 2018

बे बंदिश सड़क पर

घर तो नहीं जहाँ जाना चाहूँ 
और इस सड़क की  अपनी ही  बंदिशें हैं 
कहाँ मैं पहुँच  जाऊं 

गुज़र ऐसे  वैसे नहीं 
ज़िन्दगी ठहर  जा 
जाकर कहीं 
कोई  एक बार की मुश्किल हो तो गुज़ार लूँ मैं 
हर शाम सड़क की बंदिशों का क्या करूँ मैं 

कभी धोखा भी न हो और 
भटक जाएँ उस ओर वहां 
वीरान तन्हाइयों के हैं शोर जहां 
जहां रहती नहीं उम्मीद कोई 
और मिलती नहीं ताबीर कोई 
बस टूटे हुए ख्वाबों की किरचने बिखरी हैं 
पैरों में चुभती हैं , आँखों मैं गड़ती हैं 
दिल ओ दिमाग में घुस जाती हैं 
शाम होते ही जिगर को लहू रुलाती हैं 


इस शहर मैं एक घर तलाशता हूँ मैं 
हर ओर चीखता चिल्लाता भागता हूँ मैं 

रह रह के कोई कान 
में कहे जाता है 
अबे दिल रे 
घर से मिल रे 
या निकल ले ज़िंदगी से  

बे बंदिश सड़क पर 

सुमति 

Thursday, July 5, 2018

साझेदार

दर्द
मुश्किल तो न था सहना। ....
पत्थरों पे बून्द के  गिरने से पहले
 आसमान का दिल  धक् से रह जाए.

जो
ठिठक के रह जाये महक
फूल  के  झरने के डर   से.

और
 छुप जाएँ रौशनी के पुर्जे
किसी दरवाज़े के पीछे
अँधेरे के डर  से।

कहीं
परों  को खोलने से पहले
परिंदा सहम  जाए शिकारी के डर  से.

जो
निकलने से पहले सफर  में
तुम ठहर  गए,
तुम
 जो गुज़र गए अलेहदा ,
मेरी
 सुबहें थम सी गयीं
थम
 सा गया वक़्त मुश्किल
झर
गयीं उम्मीदें  किसी फूल सी
अँधेरे
थम गए दामन में  आकर
सहम
 गया परिंदा दिल।


दर्द
इससे  मुश्किल तो न  था सहना
जितना मुश्किल हुआ है    
तन्हा   रहना।
काश
 तूने
सुना  न होता
गैरों का कहना

.सुमति



चुतियापा

ग़ालिब छूटी  शराब पर अब भी कभी कभी 
पीता हूँ रोज़ ऐ-अब्र-ओ शब्ऐ- महताब में 

कब से हूँ क्या बताऊँ जहान-ऐ-ख़राब में 



ज़िन्दगी का तखल्लुस ही चुतियापा होना चाहिए।------ ये बात मुझे खुद से समझ आयी हो ऐसा नहीं है। 
 मुद्दतों चूतिया  बनने के  बाद ये इल्म हासिल हुआ है  ........ खैर हासिल तो घंटा नहीं हुआ  बल्कि ये आसमान से नज़्र  हुई ऐसी नियामत है.....  जिसे अब पहलू  में  रख कर शाम ओ सहर करने मे  ही सकूँ मिलता है।  
जितनी बड़ी चाहत उतना ही  बड़ा चुतियापा। 
 कुछ न मिले तो भी दर्द और मिल जाए तो  भी दर्द।  
जो चाहिए सो मिलता नहीं जो मिलगया वो चाहिए ही नहीं  था।  इन्हीं चुतियापों  में इतनी उम्र  काट लाये                    और कितने दिन  का रंडी-रोना बचा है पता नहीं। 
 पर इतना तो है की महज ये अपने साथ ही नहीं है......  रेल तो  सबकी बनी हुई है।
  क्लब मैं दारु  डकारते बुड्ढे हों या मुख्यमंत्री  के कमरे  के बहार बगल में फाइल दबाये खड़े चीफ साहब         सभी  का  हाल जमाल एक सा है।  अपनी बीबी से मोहब्बत करने  और बॉस की जी हुज़ूरी को सब मज़बूर हैं.
वैसे उपरवाले ने तो कोई ऐसा सिस्टम फिट कर के  भेजा नहीं था की साले डर कर रहो
 पर कुछ है की आदमी का डर      उसके निक्कल लेने    के  बाद ही निकलता है  और तब तक चूतियापे  में लोगों से मिलता बिछड़ता रहता है।  
अच्छा एक और सियापा है इस ज़िन्दगी के  साथ की  ये मुक़्क़मल होने का नाम ही नहीं लेती ज़िन्दगी न हुई पीठ की खुजली हो गयी साला दूसरा ही खुजला  के  मिटा सकता है पर उसे ये बताना ही तमाम मुश्किल है की खुजलाना किधर है खैर मैं तो अपनी खुजली लिख कर ही मिटा लेता हूँ कभी मिलोगे तो और बात करेंगे फिलाल तुम चूतिया बनाते रहो हम बनते रहें यही मुनासिब है की हम एक नाव में चलते रहें*****      



जिन दरख़्तों से लिपट कर 
हम बहुत रोये मगर
उन पर फूल भी खिलते रहे 
उन के खार भी चुभते रहे
इस शहर के  रास्ते 
गुलज़ार थे 
 ना 
 ख़ुशगवार थे
क्या पता क्यों पॉंव मेरे 
किस लिए चलते रहे
 और 
किस लिए दुखते रहे
यूँ कटी थी रात सारे 
दोस्तों के बीच में 
उम्र भर जगते रहे और 
 अॉंख भी मलते रहे
तुम भी बनोगे भीड़ का 
हिस्सा मुझे  इल्म था
घर हमारी बस्तियों के 
आग में जलते रहे औऱ 
खा़क में ढलते रहे.

सुमति