बे बंदिश सड़क पर
घर तो नहीं जहाँ जाना चाहूँ
और इस सड़क की अपनी ही बंदिशें हैं
कहाँ मैं पहुँच जाऊं
गुज़र ऐसे वैसे नहीं
ज़िन्दगी ठहर जा
जाकर कहीं
और इस सड़क की अपनी ही बंदिशें हैं
कहाँ मैं पहुँच जाऊं
गुज़र ऐसे वैसे नहीं
ज़िन्दगी ठहर जा
जाकर कहीं
कोई एक बार की मुश्किल हो तो गुज़ार लूँ मैं
हर शाम सड़क की बंदिशों का क्या करूँ मैं
हर शाम सड़क की बंदिशों का क्या करूँ मैं
कभी धोखा भी न हो और
भटक जाएँ उस ओर वहां
वीरान तन्हाइयों के हैं शोर जहां
जहां रहती नहीं उम्मीद कोई
और मिलती नहीं ताबीर कोई
बस टूटे हुए ख्वाबों की किरचने बिखरी हैं
भटक जाएँ उस ओर वहां
वीरान तन्हाइयों के हैं शोर जहां
जहां रहती नहीं उम्मीद कोई
और मिलती नहीं ताबीर कोई
बस टूटे हुए ख्वाबों की किरचने बिखरी हैं
पैरों में चुभती हैं , आँखों मैं गड़ती हैं
दिल ओ दिमाग में घुस जाती हैं
शाम होते ही जिगर को लहू रुलाती हैं
इस शहर मैं एक घर तलाशता हूँ मैं
हर ओर चीखता चिल्लाता भागता हूँ मैं
रह रह के कोई कान
में कहे जाता है
अबे दिल रे
घर से मिल रे
या निकल ले ज़िंदगी से
बे बंदिश सड़क पर
सुमति
दिल ओ दिमाग में घुस जाती हैं
शाम होते ही जिगर को लहू रुलाती हैं
इस शहर मैं एक घर तलाशता हूँ मैं
हर ओर चीखता चिल्लाता भागता हूँ मैं
रह रह के कोई कान
में कहे जाता है
अबे दिल रे
घर से मिल रे
या निकल ले ज़िंदगी से
बे बंदिश सड़क पर
सुमति
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