रात के इस पहर अकेला है
कश्तियाँ ले चलो समुन्दर में
चाँद को रौंद कर के आते हैं
आसमां ताकते तो उमर गुजरी
सुमति
हर लिहाज से उम्दा तू मुझ से ठहरेगा
फिर बता बीच हमारे ये सिलसिला क्या है
सुमति
कश्तियाँ ले चलो समुन्दर में
चाँद को रौंद कर के आते हैं
आसमां ताकते तो उमर गुजरी
सुमति
हर लिहाज से उम्दा तू मुझ से ठहरेगा
फिर बता बीच हमारे ये सिलसिला क्या है
सुमति