yatra

Wednesday, July 11, 2012




मेरी हस्ती के मिटने का सबब
 बनके जो आ जाओ कहीं भूले से ..

हर एक शाम मैं ने यूँ ही गुज़री है 
बे पुख्ता सी उमीद के साथ  

सुमति 



मुझे हर शाम 
ये एहसास घेर लेता है 
कि तमाम सर्द अंधेरों में पिन्हा
मेरा मुस्तकबिल
 काँप उठेगा जो कहेगा कोई
 कि
 तुम ने याद किया है मुझ को 

सुमति 



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