गम ए हयात का झगडा मिटा रहा है कोई चले भी आओ की दुनिया से जा रहा है कोई
अज़ल से कह दो कि रुक जाये दो घड़ी के लियें,
सुना है आने का वादा निभा रहा है कोई
वो इस नाज़ से बैठे हैं मेरी लाश के पास
जैसे रूठे हुए को मना रहा है कोई
पलट के आ न जाएँ मेरी साँसें
हसीं हांथों से मईयत सजा रहा है कोई
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