yatra

Friday, October 26, 2018

क़ज़ा

मौत का दिन भी
कैसा दिन होगा 
चल के जाऊंगा उस तक 
या धर दबोचेगी किसी मोड़ पर 
गिरेगी बिजली या 
यूँ ही सांस उखड़ जाएगी 
रूह कांपेगी या ठहर जाएगा ये मन 
आँख में आखरी तस्वीर किसकी होगी 
और जुबान पर वो नाम आखिरी क्या होगा 
आखिरी वक़्त की वो आखरी तमन्ना क्या होगी 
आखिरी लम्हें कितनी देर तक आखिरी होंगे 
इस नाम की क्या कोई पहचान बचेगी 
सूरत राख होने के बाद भी ...

मौत के बाद भी क्या शिकवा बचेगा कोई 
खाली बैठूंगा या करूँगा कारोबार कोई 
या यूँ ही गुम हो जाऊंगा हवाओं मैं 

कोई रिश्ता जुड़ेगा किसी से मिटटी होने के बाद भी 
या यूँ हि निशाँ मिटजायेंगे मिट्टी होते ही 
या हवा होजायेगी पहचान सारी 
वो मौसम क्या होगा 
दिन होगा की रात होगी 
धुप होगी या बरसात होगी 
खारे पानी की 



कुछ भी तो नहीं मालूम 
मालूम है तो बस ये की 
जब मैं आखिरी सांस तक पहुँचूगा 
वो सांस मैं तुम से लूंगा 
आखरी वक़्त मेरे पास तुम होगी 

नहीं मालूम 
मौत का दिन भी कैसा  दिन होगा 
बस इतना मालूम है 
ज़िन्दगी के पहलु मैं मेरी मौत होगी 

सुमति 

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