मुझे दरवेश* कर दे *सन्यासी
न जानू मैं किसी को न कोई मुझ को जाने ...
मेरी हस्स्ती का मतलब
tu आबे रवां * याने..... (* बहता हुआ पानी )
मेरी इल्तजा यही है
तू माने या न माने ....
मुझे दरवेश कर दे ...
तेरी दुनियां अजब है
तेरे फंदे गजब हैं
मैं फंसता जा रहा हूँ
तेरे बन्दे अजब हैं ..
मुझे मिलता नहीं है
kahin कोई ऐसा किनारा
जहाँ मैं बांध कर के अपनी
कश्ती का
saamaan सारा
.......
छोदुं इस जहाँ को
न हो किस्सा दुबारा ॥
मगर ये भी चाहता हूँ
रहें कुछ ऐसे महफूज
कि हों मेरी नज़र में
mera रैआं* बिचारा । * जवानी
.....मगर कब तक कहूँ मैं
दुआ घिस गयी है मेरी
मेरे रिश्ते चुक रहे है
हस्ती मिट रही है meri
मेरे लफ्ज खो गए हैं
मेरी जुबा फिसल रही है
मैं बोलना भी चाहूँ
तो बंदिशें कई हैं
मैंने जिस किसी को chaahaa
उसकी चाह दूसरी है
.......... में परेशां हूँ खुद से
मुझे दरवेश कर दे
मुझे दरवेश कर दे
सुना है लोग ऐसे
तेरी दुनियां में आएं
जिन्हें मिटटी मिली थी
जो तुझ से सोना पाए
मुझे सोना मिला है
मैं mitti मांगता हूँ
मेरे हिस्से कि जन्नत
मैं तुझसे बांटता हूँ
नहीं कहता मैं तुझ से
मुझे परवेज* करदे *famous
मैं तुझ से मांगता हूँ
मुझे दरवेश कर दे.......
मुझे दरवेश कर दे ................................
मुझे दरवेश कर दे
ये मेरी नज्म तमाम उन लोगों के नाम जिनेह मैंने chahaa पर वो चाह कर भी मुझे चाह न सके
...
अच्छा या बुरा
आपका
सुमति
1 Comments:
लिखते रहो
अच्छी प्रस्तुती के लिये आपका आभार
खुशखबरी
हिन्दी ब्लाँग जगत के लिये ब्लाँग संकलक चिट्ठाप्रहरी को शुरु कर दिया गया है । आप अपने ब्लाँग को चिट्ठाप्रहरी मे जोङकर एक सच्चे प्रहरी बनेँ , कृपया यहाँ एक चटका लगाकर देखेँ>>
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