बे ख़बर
जिंदगी दर्द-ऐ-लबादा है हम न समझे थे
go ya सहेज के क्यूँ रखते इस पैराहन को ।
जब भी रात की उंगलिया चाँद के सिराहने कुछ टटोलती हैं.... तो टूटे हुए तारे हाँथ से सरक कर गिर पड़ते है ये तारे ..,,,...मानो हमारे अरमान ,,,...जो कभी चलते फिरते और उम्मीद से भरे होते ...जैसे दौरे बदगुमानी में आखिरी safe का koi मुग़ल बादशाह किसी मोजज़ा का इंतजार करता था और bar- bar zillat से takrata था ..वैसे ही en armano ने भी dam toda और तारे बन गए ..... और नींद उठा कर फिर वहीं चाँद के सराहने रख देती है उन तारों को ..मैं नींद में कहाँ तक और कब तक rahun ... tiragi कब तक रहे ....चाँद की roshni में khwab की faslon के pakne का entzar कब तक करूँ ...जो khurshid mukhalif है तो मैं कहाँ जाऊँ .....
कद उसका kaba से बड़ा हो गया
जो सड़क पे unghara खड़ा हो गया ...
ये तारे तो chhup के रात के अंधेरे मैं timtimaate हैं खुल कर सामने नहीं आते ये मेरे अन्दर ander बढ़ते हैं मेरे जिस्म को phadte हैं .....और कोई बे ख़बर sota है ...