अब मैं क्यूँ कुछ काम करूँ
क्या क्या याद रखूं 
और क्या क्या  काम करूं 
मैं तो चुक  जाने की हद पर हूँ
 अब क्यूँ ना आराम करूँ
एक उम्र गुज़री गिरते पड़ते 
एक लम्हा खुद के साथ नहीं 
बस सोच यही थी कुछ चल लूँ 
फिर बैठूँ ,पर आए वो हालात नहीं 
हुई दुपहरी  इतनी लम्बी 
शाम ना आई हाँथ मेरे 
तनहा गुज़रे सारे लम्हे 
गुज़रने थे जो साथ तेरे  
बेगार करूँ याकरूँ बगावत 
सोच नहीं दिल पाता है 
दुःखता है ये रातो दिन, मुकम्म्ल
ख्वाब नहीं हो पाता है।
सुमति 
