कबीर
डिमॉक्रेसी हमें सोने की इजाज़त नहीं देती ।किसी भी दौर मैं पलिटिकल anaesthesia किसी
Democratic ऑपरेशन की पहली शर्त नहीं हो सकती ।अगर हो तो समझना ही होगा की उलटी गिनती गिना कर सियासतदा हमारे सोने का इंतज़ार कर रहेहैं ।लोकतंत्रऑपरेशन table पर पड़ी बीमार व्यवस्था नहीं है जिसे हमेशा multiple operations की ज़रूरत रहती हो मगर ये अफ़ीम सूँघा कर लूटने वाले की ही ग़लती हो ऐसा नहीं है लुटनेवाले भी इतने सालों में इस ज़रायामपेशा क़ौम से वाक़िफ़ ना हो सके तो उन्हें सोने और लुटने से कोई नहीं बचा सकता ,,,,
सुखिया यह संसार है खावे और सोवे । दुखियादास कबीर है जागे और रोवे ।।
बहुत मुश्किल है
की जब तुम सो रहे हो
बतला सको कुछ् भी
सच तो दूर की शैय है
की जब तुम सो रहे हो
सुन सको कुछ भीबदल कर करवटें
मुमकिन है कि
तुम फिर ख़्वाब ना देखो
मगर ये बंद आँखें
कैसे नुमाया सच करेंगी
ये सिलवटें जो हैं तुम्हारी नींद से पैदा
भला कैसे हटेंगी
तुम्हें कैसे दिखेंगी
की जब तुम सो रहे हो
जो तुम्हारे जागने कि सूरतें
बन्ने नहीं देते
तुम्हें जो ख़्वाब में लड़ना सिखाते हैं
जो तुम्हें हर बात पर अड़ना सिखाते हैं
बड़े माहिर बड़े शातिर बहुत पहुँचे खिलाड़ी है
बहुत मुश्किल है
की जब तुम सो रहे हो
हुई क्या साफ़ गंगा किस को दिखलाएँ
ये बिजली गाँव तक पहुँची नहीं है कैसे बतलाएँ
कहाँ तक ख़ुशनुमा वादों को ढोएँ
और कहाँ तक झूठ पर ताली बजाएँ
या तो ये बताओ किस तरह ख़ुद को परोसें
या किस तरह इज़्ज़त बचाएँ
कि जब तलक तुम सो रहे हो
या
हुकूमत के लिखे वे ही सफ़े दोहराएँ
जिन्हें तुम पढ़ते पढ़ते सो गए थे
जिन्हें अख़बार ,चैनल कह रहे थे ।,,,,।
बहुत परेशान हाल हाल हैं तुम्हें कैसे बताएँ
तब अपनी बात इस दौर में
किस को सुनाएँ
कि जब कुछ सोचने के हक़ पे ही पाबंदी लगी है ;:
की सुन्नने को यहाँ कोई राज़ी नहीं है
और सिर पर दूसरी मुश्किल खड़ी है
कि
बड़ी तादात में अब लोग सोते जा रहे हैं
अब यहाँ कुछ पूँछने का भी चलन बाक़ी नहीं है
वही सच मान लेना है जो होर्डिंग्स पर लिखा है ,
शहर में जब लोग सोते जा रहे है
शहर में उनकी जगह सब होर्डिंग बतला रहे हैं।
मुझे उम्मीद है जब जाग कर के सब उठेंगे
रफ़ू पैबंद सारे हो चुकेंगे
पलक पर बोझ ख़्वाबों का लिए हम
शिकस्ता हाल में बैठे मिलेंगे
कि जब तलक तुम सो रहे हो ।
सुमति
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