मामूली पुर्जा
आज हड़ताल है भारी  मशीनरी ढप्प पड़ गयी है ... वो  निदा फ़ाज़ली  साहब की एक नज़म बरबस याद आरही है
वो एक मामूली
छोटा-मोटा
ज़रा सा पुर्जा
गिरे अगर हाँथ से
तो लम्हों नज़र न आये
निगाह ढूंढे जिधर
उछल कर उधर न जाए
वो कब किसी के
शुमार में था
वो कब किसी की कतार में था
मगर ये कल
इश्तिहार में था
उस एक मामूली ,
छोटे- मोटे ज़रा से पुर्जे ने
सर उठा कर
विशाल हांथी सी धडधडाती
मशीन को बंद कर दिया है .
    
    वो एक मामूली
छोटा-मोटा
ज़रा सा पुर्जा
गिरे अगर हाँथ से
तो लम्हों नज़र न आये
निगाह ढूंढे जिधर
उछल कर उधर न जाए
वो कब किसी के
शुमार में था
वो कब किसी की कतार में था
मगर ये कल
इश्तिहार में था
उस एक मामूली ,
छोटे- मोटे ज़रा से पुर्जे ने
सर उठा कर
विशाल हांथी सी धडधडाती
मशीन को बंद कर दिया है .
