yatra

Wednesday, February 20, 2013

मामूली पुर्जा

आज हड़ताल है भारी  मशीनरी ढप्प पड़ गयी है ... वो  निदा फ़ाज़ली  साहब की एक नज़म बरबस याद आरही है


वो एक मामूली
छोटा-मोटा
ज़रा सा पुर्जा

गिरे अगर हाँथ से
तो लम्हों नज़र न आये

निगाह ढूंढे जिधर
उछल कर उधर न जाए


वो कब किसी के
शुमार में  था
वो कब किसी की कतार  में  था


मगर ये कल
इश्तिहार में था

उस एक मामूली ,
छोटे- मोटे ज़रा  से पुर्जे ने

सर उठा कर
विशाल हांथी सी धडधडाती
मशीन को बंद कर दिया है .