yatra

Wednesday, October 24, 2012

दर्द

कई बार सोचा 
बे पर्दा तमाम रिश्तों के नंगे बदन पर
मैं अपनी सख्त ऊँगली से लिखूं
कि तुमको अब   मैं
भूलता हूँ

मगर आसान   होता स्लेट पर लिख्खा  मिटाना
जिस तरह है .
.मैं हरगिज़ मिटा देता वो  रिश्ता  
तुम्हारे इस हुनर को   सीख ना पाया कभी मैं 
मुझे अफ़सोस ये है ..
तुम्हारा साथ भी जाया  किया मैंने

बे-बदन हो चुके  तमाम
रूहानी रिश्तों को सच में
मैं जिंदा किये हूँ

और जिन्हें  मैं ही  भोगता हूँ
 
सुमति