दर्द
कई बार सोचा
बे पर्दा तमाम रिश्तों के नंगे बदन पर
मैं अपनी सख्त ऊँगली से लिखूं
कि तुमको अब मैं
भूलता हूँ
मगर आसान होता स्लेट पर लिख्खा मिटाना
जिस तरह है .
.मैं हरगिज़ मिटा देता वो रिश्ता
तुम्हारे इस हुनर को सीख ना पाया कभी मैं
मुझे अफ़सोस ये है ..
तुम्हारा साथ भी जाया किया मैंने
बे-बदन हो चुके तमाम
रूहानी रिश्तों को सच में
मैं जिंदा किये हूँ
और जिन्हें मैं ही भोगता हूँ
सुमति
कई बार सोचा
बे पर्दा तमाम रिश्तों के नंगे बदन पर
मैं अपनी सख्त ऊँगली से लिखूं
कि तुमको अब मैं
भूलता हूँ
मगर आसान होता स्लेट पर लिख्खा मिटाना
जिस तरह है .
.मैं हरगिज़ मिटा देता वो रिश्ता
तुम्हारे इस हुनर को सीख ना पाया कभी मैं
मुझे अफ़सोस ये है ..
तुम्हारा साथ भी जाया किया मैंने
बे-बदन हो चुके तमाम
रूहानी रिश्तों को सच में
मैं जिंदा किये हूँ
और जिन्हें मैं ही भोगता हूँ
सुमति