yatra

Tuesday, June 8, 2010

मुझे एहसास है .कि ..मैं क्या हूँ

बहुत मुश्किल में हूँ कि ये दावा कर दूँ कि .....मुझे अहसास है कि मैं क्या हूँ ...पर वो है कि ..

मेरा मजलिसी तब्बसुम ,मेरा तर्जुमा नहीं है .......

vaise to अक्स्सर ऐसे ही लोगों से मिलना होता है कि जो इस अहसास से दूर होते हैं या किसी गुमान में रहते हैं कि उन्हें ये नहीं मालुम कि ...वो क्या हैं .....कितने हैं ... कैसे हैं ... कहाँ तक हैं ...क्यूँ हैं .....और किस के हैं ...मैं जानता हूँ बहुत से ऐसे नाते रिश्ते दारों को और एक आध दोस्तों को भी ..(दोस्त एक आध ही क्यूंकि उनसे इतनी मुहब्बत करता हूँ कि उनकी इस आदत के बावजूद उन्हें छोड़ नहीं सकता और रिश्तेदार सभी क्यूँ कि उन को बदलना मेरे बस कि बात नहीं hai ) वे सब मुझे अपने में छुपे ....अपने को छुपाये .....अपनों से दूर ..अपनी ही दुनियां के ..... अपनी नज़रों में सब कुछ .....अपने ही लिए बने ... लोग लगते हैं ...

मुझे अहसास है कि '' मैं '' थोडा तुम्हारी मुस्कराहट सा दिलकश ...ज़रा सा तुम्हारी सोच तक पहुँचता हुआ .... मामूली सा तुमसे अलग ..... हल्का सा तुमको पाता हुआ ज्यादा सा तुमको खोता हुआ ............... छटांक भर जिंदगी से भरा और मन भर तुमसे खाली .... कुछ आसान से ख्वाब और बहुत कठिन सी सच्चाइयों के साथ ...कुछ हासिल -ए- तकदीर और बहुत सा कुछ नहीं .... दो चार नोट .... और बहुत कि ख्वाइश से दूर ....थोड़ी सी जमीन ढेर सा आसमान .....पत्ते हवा बूंदें ...... एक नन्हीं सी जान ...और ढेरों अरमान .....खुद को दुहराता और खुद को ही काट ता हुआ ..... मैं

तुम्हारी समझ से बहुत परे तो नहीं .... बहुत अलग भी नहीं .....कुछ दुरुस्ती कि गुन्जायिश के साथ .....

मेरे दोस्त ....

मेरा तर्जुमा तुम्ही हो

सुमति