yatra

Friday, July 17, 2020

हेड्फ़ोन

ना जाने कौन 

उलझा के 

रख देता है 

हर रोज़ ज़िंदगी को

और 

हर रोज़ ही सुलझाता हूँ मैं 

मगर फिर भी  ना जाने कैसे उलझ जाती है हर रोज़ ये 

,,ज़िंदगी ज़िंदगी सी होनी चाहिए 

हेड फ़ोन सी नहीं .


सुमति 

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