मैं रिश्ते ओढ़ लेता हूँ
मिला देता हूँ खुद को
दर्द की jज्यूँ नील
मिलजाती सफेदी से
निकल आता अलेहदा रंग
भले वो दर्द का रंग हो
मुझे मिलते कहाँ हैं
लोग जो हर मोड़ पर
वैसे रहें जैसे मिले थे
मोड़ पर पहले
बदलते मोड़ के ही साथ
ये रिश्ते बदलते रंग क्यों हैं
ये वो नील के जैसे
तपन मैं दर्द के आगे
फ़ीके पड़ते क्यों हैं ...
रिश्ते नील तो होते नहीं हैं
उड़ा करते हैं क्यों वो
वक़्त की मुश्किल तपन मैं .
सुमति
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