yatra

Sunday, March 3, 2019

मैं रिश्ते ओढ़ लेता हूँ 
मिला देता हूँ खुद को 
दर्द की jज्यूँ नील 
मिलजाती सफेदी से 
निकल आता अलेहदा रंग 
भले वो दर्द का रंग हो 
मुझे मिलते कहाँ हैं 
लोग जो हर मोड़ पर 
वैसे रहें जैसे मिले थे 
मोड़ पर पहले 
बदलते मोड़ के ही साथ 
ये रिश्ते बदलते रंग क्यों हैं 
ये वो नील के जैसे 
तपन मैं दर्द के आगे 
फ़ीके पड़ते क्यों हैं ...

रिश्ते नील तो होते नहीं हैं 
उड़ा करते हैं क्यों वो 
वक़्त की मुश्किल तपन मैं .

सुमति 

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