उनके ही जी की
अपने किये की सजा पा रहा हूँ
पिए जा रहा हूँ जिए जा रहा हूँ
नज़र से नुकीला दिखा जो शहर में
जिगर के लिए मैं लिए जा रहा हूँ
तमाशा बनाना कोई उनसे सीखे
मैं उनके ही जी की किये जा रहा हूँ
खरामा खरामा लगी ख़त्म होगी
मैं खुद को तसल्ली दिए जा रहा हूँ
कहीं लुत्फ़ उनका पड़े कम न ग़ालिब
मैं गलती पे गलती किये जा रहा हूँ
तराशा बहुत बुतशिकन ने है खुद को
अपनी बीनायी उसको दिए जा रहा हूँ
सुमति
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