yatra

Tuesday, August 28, 2018

उनके ही जी की

अपने किये की सजा पा रहा हूँ 
पिए जा रहा हूँ जिए जा रहा हूँ
नज़र से नुकीला दिखा जो शहर में 
जिगर के लिए मैं लिए जा रहा हूँ 
तमाशा बनाना कोई उनसे सीखे 
मैं उनके ही जी की किये जा रहा हूँ 
खरामा खरामा लगी ख़त्म होगी 
मैं खुद को तसल्ली दिए जा रहा हूँ 
कहीं लुत्फ़ उनका पड़े कम ग़ालिब 
मैं गलती पे गलती किये जा रहा हूँ 
तराशा बहुत बुतशिकन ने है खुद को 
अपनी बीनायी उसको दिए जा रहा हूँ 


सुमति 

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