दर्द शहर
अब कभी इस शहर से मिलना नहीं होगा
किया रुखसत खुदी को खुद की चाहत से
खुले ज़ख्मों का अब सिलना नहीं होगा .
जिन्हें आदत है मिलने और बिछड़ने की
हैं जिनकी फितरतें हर शै बदलने की
दिल्लगी मुख़्तसर सा रिवाज़ जिनका है
रो के हंस देना मिजाज़ जिनका है
ऐसे हमसफ़र के साथ अब चलना नहीं होगा .
इस शहर मैं हर सिम्त तनहा रास्ते क्यों हैं
हर ओर क्यों वीरानगी के चश्मे पुरसू हैं
हैं भीड़ के मुँह पर जमी खामोशियाँ कैसी
हैं शोर के आलम में भी तन्हाहियाँ कैसी
ये कौन लोग हैं और क्यों आतिश जलाये हैं
करे हैं जश्न क्यों और किस लिए खुशियां मनाये हैं
इनके लिए अब खुद को बदलना नहीं होगा
इस शहर को शायद ही हो अंदाज़ जरा सा
मैं छोड़ रहा हूँ इसे एक बन के तमाशा
इस गली से इस दर से अब निकलना नहीं होगा
टूटे हुए चिराग का जलना नहीं होगा
अब कभी इस शहर से मिलना नहीं होगा
सुमति
किया रुखसत खुदी को खुद की चाहत से
खुले ज़ख्मों का अब सिलना नहीं होगा .
जिन्हें आदत है मिलने और बिछड़ने की
हैं जिनकी फितरतें हर शै बदलने की
दिल्लगी मुख़्तसर सा रिवाज़ जिनका है
रो के हंस देना मिजाज़ जिनका है
ऐसे हमसफ़र के साथ अब चलना नहीं होगा .
इस शहर मैं हर सिम्त तनहा रास्ते क्यों हैं
हर ओर क्यों वीरानगी के चश्मे पुरसू हैं
हैं भीड़ के मुँह पर जमी खामोशियाँ कैसी
हैं शोर के आलम में भी तन्हाहियाँ कैसी
ये कौन लोग हैं और क्यों आतिश जलाये हैं
करे हैं जश्न क्यों और किस लिए खुशियां मनाये हैं
इनके लिए अब खुद को बदलना नहीं होगा
इस शहर को शायद ही हो अंदाज़ जरा सा
मैं छोड़ रहा हूँ इसे एक बन के तमाशा
इस गली से इस दर से अब निकलना नहीं होगा
टूटे हुए चिराग का जलना नहीं होगा
अब कभी इस शहर से मिलना नहीं होगा
सुमति
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