तुम्हारे बिन
ये दिन
दरख्तों की तरह ,
हिलते नहीं मुझ से
ये घड़ियाँ भी
तुम्हारे बिन
ठहर जाने की जिद मे हैं
फलक पर रात भर तारे
तुम्हारी बात करते हैं
उनकी फुसफुसाहट ही
मुझे सोने नहीं देते
मैं हर पल में परेशां हूँ
परेशां है हर एक लम्हां
वहीँ पर है जहाँ पर थी
तुम्हारे बिन कज़ा मेरी
बुलालूं पास उसको या कि
उस तक दौड़ कर पहुंचूं
मगर बेहिस दरख्तों कि तरह
ये जिंदगी मेरी ...
कि मुझ से तू नहीं मिलता
....कि मुझ से दिन नहीं हिलता
सुमति
1 Comments:
accha hai boss,,,,,,
muddat baad aap dikhaii pade.....
masha allah
kya vaapsi hai.....
jaldi fir aamad karen.
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