yatra

Wednesday, May 25, 2011

मुझे दे दो




रसीले होंठ , ..मासुमाना पेशानी ,... हसीं आँखें

कि मैं एक बार फिर रंगीनियों में गर्क हो जाऊं

मेरी हस्ती को तेरी एक नज़र आगोश में ले ले

हमेशा के लिए इस दाम* में महफूज़ हो जाऊँ (* जाल )

गुज़श्ता हसरतों के दाग मेरे दिल से धूल जाएँ

मैं आने वाले गम कि फिक्र से आज़ाद हो जाऊँ

मुझे दे दो ....रसीले होंठ , हंसी आँखें ... वो मसुमाना पेशानी ......


पता नहीं कहाँ पढ़ी सुनी ये ख्यालगोयी.... सो कर उठा तो जेहन मैं तैर रही थी

आप ही के लिए लिख मारी ...गुज़ारिश है कि फिर से पढ़ लें ...मुझे दे दो ...

sumati


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