yatra

Monday, October 3, 2011

मैं इस दिल से परेशां हूँ ..

यूँ कर वो मचलता है ..कि

दुनियां बाप का घर हो .

बहुत बेशर्म सी मांगें

//// कुलांचें भर के चलती हैं

हमेशा एक न एक जिद

उसकी ज़द में पलती है

हमेशा  हसरतें पैबंद की

<<<<>>>><<>>......;मानिंद चस्पा हैं

निकल पड़ता है वो आज़ाद सय्यारों की संगत में   

छुड़ा लेता है अक्क्सर हाँथ  हसरतों की सोहबत में 

मैं अपने दिल की कहता हूँ ...मैं इस दिल से परेशां हूँ

परेशां हूँ बहुत मानो.......

तुम आकर इस को ले जाओ

मुझे दे जाओ अपना दिल ... जो   चलता कर सकूँ खुद को   

सुमति



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