yatra

Thursday, September 11, 2008

बस यूँ ही यहाँ आकर व्यस्तता का रोना ठीक नहीं लगता । हर आदमी काम धंधे से लगा है .लेकिन हम जैसे अव्यवस्थित व्यक्ति को तो समय का रोना जिंदगी भर रोना है.बस एक काम के पीछे पड़ कर सारा समय उसी में बिता देना और बाकि काम छूट जाना हमेशा से रहा है ..और कितना भी कोसो अपने आप को लेकिन ...सुधार कहाँ...किस का नाम है... वो जो यहाँ आते हैं रोज़ एस उम्मींद में की शायद में कुछ कहूँगा वे भी बहुत व्यस्त हैं मुझ से ज्यादा महत्वपूर्ण भी लेकिन क्या है ....कल फिर वैसा ही मुझे हो जाना है शायद इसीलिए दिन रात यात्रा में रहता हूँ ...सजा है मेरी ....मेरे लापरवाह होने की ...हमेश से फैला -फैला..... बिखरा -बिखरा ..में अपनी सजा के साथ ...

बुहारता हूँ ...
हर रोज़ ..कुछ ...
शायद
जिंदगी को॥
मगर ... हताश हवाएं
बिखेर देती है ....
कायनात मेरी...

यात्री

3 Comments:

Blogger मनीषा said...

dear sumati,
zindagi me kisi ko pyaar zyada mila, to kisi ko paisa ,kisi ko rutba zyada mila , to kisi ko khushi............per ek cheez ishwar ne sabko ek si di hai aur voh hai WAQT . is waqt ko koi baandh to naihi saka hai per iske bepanah kazane me hum bahut kuch chura sakte hai .... jisne yeh karna seekh liya waqt shaayad usper kabhi meharbaan ho jata hai....
with good wishes ...

September 11, 2008 at 10:03 PM  
Blogger Pawan Kumar said...

सुमति भाई
अच्छा लगा आपने लिखा मैं तो हर दिन आपकी दहलीज़ पर घंटी बजाकर निकल जाता था ......अन्दर से कोई निकलता ही नही था.. लगता था गहरी नींद में आप सोये हुए हैं ...आज सचमुच आपने बड़ा अच्छा लगा....कविता के तो क्या कहने....ज़रा जल्दी जल्दी ब्लॉग पर लीलते रहा करिए........व्यस्तताओं के बावजूद समय निकालिए....
आपकी चाहत में

September 13, 2008 at 11:38 PM  
Blogger Pawan Kumar said...

सुमति भाई अच्छा लगा आपने लिखा.बहुत अच्छा लिखा . मैं तो हर दिन आपकी दहलीज़ पर घंटी बजाकर निकल जाता था ......अन्दर से कोई निकलता ही नही था.. लगता था गहरी नींद में आप सोये हुए हैं ...आज सचमुच आपने बड़ा अच्छा लगा....कविता के तो क्या कहने....ज़रा जल्दी जल्दी ब्लॉग पर लिखते रहा करिए........व्यस्तताओं के बावजूद समय निकालिए....
आपकी चाहत में

September 13, 2008 at 11:40 PM  

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