yatra

Saturday, August 9, 2008

खुराफात का दफ्तर

शायद ये आप की नज़र मैं हमारी दिक्कत ही तो है जो मिटने मिटाने की बहस से हम आगे की नहीं सोच पाते hain . par शायर कहता है-
" वो अलग बाँध के रखा है ,जो माल खास है "
मैं वोही पोटली यहाँ खोल के बैठा हूँ । ये खास है । मैं खुश हूँ जिन्होंने मेरे दुख, दिक्कत तकलीफें बाँटनी हैं वो यहाँ आते है बार -बार .लगातार । जिन्हें मुझ से सुख चाहिए उनको इन तकलीफों से न सरोकार है न होना चाहिए न उन्हें मैंने यहाँ कभी बुलाया न यहाँ का पता दिया । मेरे चंद अपने जो इस यात्रा के दौरान बनगए हैं मेरे लिए उनसे बात करना ,मेरी यात्रा के मुक्कमल होने जैसा है .रही बात दुःख से सुख की या बिगड़ने के बाद बनने की तो जो मुझ से बन pada है वो दुनिया देख रही है .और जो मैं बिगाड़ के बैठा हूँ उसे तुम ही देखो....... मेरे साथी यात्री ।

इस खुराफात के दफ्तर मैं हर किसी की दाखिली पर मुझे गुरेज़ होगा

हो सके तो किसी अजनबी को यहाँ का पता भी न देना ....मैं क्या कहूँ ....बस इतना ही
"कोई चुटकी सी कलेजे मैं लिए जाता है ,
हम तेरी याद से गाफ़िल नहीं होने पाते ।

ठीक है न दोस्त ग़लत हो तो फ़िर टोंको ।
सुमति

2 Comments:

Blogger Pawan Kumar said...

lag raha hai ki vyastata jyada bhad gayi hai...blog par kam likhate hain aur blog par comment karna to shayad bhool hi gae hain.

August 12, 2008 at 4:50 PM  
Blogger मनीषा said...

Since last fewdays you are absent from your blog i think you are regular so be on blog and your writings inspires many.

August 16, 2008 at 8:28 PM  

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