yatra

Thursday, August 7, 2008

पुनश्च तोरा-डोरा मैं

आज फ़िर रात ३ बजे ये अचानक चलदेना पड़ा रास्ता कठिन था पर बैचेंनियाँ कदम टिकने कहाँ देती हैं .३.३४० पर एक कप चाय पीने के बाद यहाँ आगया इधर उधर करने के बाद बस लिख ने बैठ गया पौ फटने तक लिखते ही रहने का इरादा है या यूँ कहें की सफर जारी रहेगा । कोई कैसे समझ ये जो मुझे होने नही देती वो तलाश की बेकरारी क्या है ....मैं तालिबान नहीं बनानेवाल ....पर अपनी दुनिया का लादेन जरुर हूँ ...जैसे चाहूँ वैसे बरबाद करने का जूनून हावी रहता है ...बर्बाद होने का भी॥ सुबह हो रही है ४.४५ हो चुके हैं दुनिया जगे ...लादेन को फ़िर पेन शर्ट पहनकर आदमी बन के दुनिया के बीच आना होगा ......इस लादेन की ये भी तो एक दिक्कत है ......वो लादेन किरदार तो एक ही है ......यहाँ कितने किरदारों में, मैं बनता हूँ

मैं सोभी जाऊँ रातों मैं

लेकिन तू है की मुझ मैं सोता नहीं है

2 Comments:

Blogger मनीषा said...

Dear sumati,
bechaini kyu hai ye to aap ko behtar pata hoga but i afiled to understand that what you want to destroy? barbad karne k baad kuch construct karne ka socha hai to well and good and if not why? you don't have right even to destroy yourself because ap sirf apne liye nahi hote hai. Kirdar nibhane k liye hi hum hai aur nibhate bhi hai ....... koshish ye honi chaiye ki kirdar koi bhi ho jeevant aur saccha ho bojhil ya dikkat nahi mahsoos honi chahiye
Aap to vaise bhi shaayar kism ke insaan hai aur ase logo ka kirdaro ka fasaad naihi hota .......

August 7, 2008 at 3:15 PM  
Blogger Pawan Kumar said...

Manu ki baat se 100% percent sahmat..... aap apne saath to jyadati kar hi rahe hain ...apne fan ke saath bhi jyadati kar rahe hain ( remember SMITA PATIL to NASEERUDDIN SAH in BAAZAR).

August 7, 2008 at 6:06 PM  

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