pawan
pawan ,
आज से करीबन दस साल पहले एक महिला मित्र ने मेरे लिए एक पोएम लिखी थी पता नहीं आज वो कहाँ हैं .....लेकिन उन लाइनों में मेरे प्रति उनका उत्कट विश्वाश झलकता है ..आज भी मैं उस बात के लिए ..मै एक अहसास जो ..अव्याकृत है ..रखता हूँ और शायद उनका मेरे प्रति ये आग्रह ....मैं समझता हूँ ....पूरा सच नहीं कहता ...और मैं उस पर शायद ,आधा अधुरा भी, खरा नहीं उतरा....लेकिन ..पवन आज जब तुम मसूरी के रस्ते में होगे तो वे ही लाइने मैं तुम्हे सुनाना चाहता हूँ ...मैं तुम्हे सुनाना चाहता हूँ ॥(.. maaf करना दे नहीं सकता )..पर उन लाइनों पर तुम खरे उतरोगे...क्यूंकि....मेरा manna hai
जब जीवन कट गया रात...
ही रात में ...तो ...
तो देखता हूँ ...
भोर होने को है ...तुम्हारी देहलीज पर...
हो सके तो वरन करलो
मेरे ऐसे स्वप्नों को ....
जो पुरे हों सकें तुम्हारे जीवन के ...
प्रभात में ....
ये तो मैं कह रहा हूँ और इसीलिए अपने मित्र की वो लाइने मैं तुम्हें सुनाना चाहता हूँ-
तुम को देख कर /मुझे सूझती है
सागर की एक उत्ताल तरंग ,
बाँध सकेगा न जिसे कोई
जो सदा ही बढेगी आगे
चीर कर अन्नंत जलराशि .
तुम्हें देखकर /मुझे सूझता है
प्रथ्वी के आँचल मैं ऊँघता
एक अंकुर , kun bhunata sa ...
ऊँचे गगन को जो चूमेगा
गहरे कहीं धरती से जुड़ कर भी.... ।
खुशियाँ tumhara साथ न chhoden esi दुआ के साथ ...
sumati
2 Comments:
सुमति भाई
आपकी शुभकामनाओं के लिए तो शुक्रिया या धन्यवाद् जैसी औपचारिकताएं शायद बहुत छोटी हैं . मैं जानता हूँ कि मसूरी आने का ख्वाब आपका था मगर किसी वज़ह से वो पूरा न हो सका. आकी इस इच्छा को मैं भली भांति समझता था -समझता हूँ .बहरहाल ये भी है कि जिंदगी में हर वो चीज़ मिलती भी नही है जिसे आप चाहते हों. जिंदगी रंग बदलती है..........मगर कभी कभी ये रंग इतने चटख होते हैं कि पिछला सब कुछ पीछे छूट जाता है. आपकी कविता ,आपकी पुरानी यादों के साथ अच्छी लगी आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करूंगा......बाकि गाहे बगाहे ब्लॉग पर लिखता ही रहूँगा.....सचमुच अंतर्मन तक स्पंदित हो गया हूँ.
यात्री पिछले दस दिनों से कहाँ गायब है. मैं तो इतनी व्यस्तता के बावजूद लिख रहा हूँ आप शांत क्यों हैं? इन्तिज़ार में
आपका ही पवन
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home