yatra

Monday, July 19, 2010

sazayen भेज do ....

मुझे गुलज़ार साहब कि कलम से रेशम के कतरे बिखरते दिखाई देते हैं शायद post -modern era कि बात यहीं दम तोडती लगती है मुझे यकीं के साथ ये अर्ज़ करना है कि उसी प्लेटफ़ॉर्म पर वो रूहानी सी लाइने खड़ी मिलती हैं जहाँ फुल स्टॉप और कोमा के सहारे गुलज़ार साहब ग़ज़ल और नज़्म के जामे में उन्हें (लइनों को ) खड़ा कर जाते हैं कोई कैसे कह्सकता है कि पोएट्री हों नहीं सकती post modern critics को गुलज़ार समझ आयें तो शायद वे अपनी ही बात से इतिफाक न रखें । philhal गुलज़ार कि एक बेहतरीन ग़ज़ल बहुत ऊंचाई से आई है इंशा अल्लाह आप को भी पसंद आये यूँ कर ये post भेज रहा हूँ

गुलों को सुनो ज़रा तुम , सदायें भेजी हैं
गुलों के हाँथ बहुत सी , दुआएँ भेजी हैं ।

तुम्हारी खुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं
वो सारी चीजें जो तुमको रुलाएं भेजी हैं ।

सियाह रंग चमकती हुई किनारी है
pahin lo acchi lagengi , घटायें भेजी hain ।

tumhare khwab से har shab lipat के sote हैं
sazayen भेज do , hamne khatayen भेजी हैं ।

do lines और
meri aankhon pe tab savera हों ,
meri mutthi में jab andhera हों ।

dard, jazbat ,ashq ,tanhai
loot le aake जो lootera ho ।

sumati @ yatra



1 Comments:

Blogger मनीषा said...

तुम्हारी खुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं
वो सारी चीजें जो तुमको रुलाएं भेजी हैं ।
yu to puri gazal hi behtareen h per in do lines me gajab ki kashish h

July 25, 2010 at 4:31 PM  

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