yatra

Wednesday, July 14, 2010

मेरे होने का मकसद

नज़र मैं एक ख्वाब आ के बैठ गया । सब दिखना बंद होने लगा । उम्र के साथ आपकी शक्शियत पुख्ता होने लगती है ....और जरूरतें इंसानी ।
हर उम्र का एक ख्वाब होता है
उम्र १३ .....ख्वाब सैकिल का
उम्र १६ .....पड़ोस कि लड़की
उम्र २० ......classmate girl का ख्वाब
२३...... नौकरी का
२७.... दौलत का
३२ .....तरक्की का ख्वाब ....और एक खुबसूरत मकान का ख्वाब
३५ .....अपने होने का ख्वाब .....
......ये मैं जान ता हूँ कि ये ऊपर के सब ख्वाब देख चूका हूँ ...
मेरे ख्वाब कमोवेश पूरे भी हुए हैं वो कौन सी ताक़त है जो खाव्ब पूरा करालेती है मैं नहीं जानता पर...... इतना जान ता हूँ मेरे होने के मकसद अभी तक पूरे नहीं हुए हैं ...मेरी अब इंसानी जरूरतें ....जो पूरी हो रही हैं या यूँ पकड़ो कि हो चुकी हैं
पर इंसानी मकसद .....शायद ..... यात्रा शुरू करने का ..वक़्त आ रहा है ..वो ख्वाब जो आँखों पे चिपका है ....कुछ और देखने नहीं देता ....जल्दी मिलता हूँ ....
सुमति

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