दया दृष्टि
खोजती है जमी, आसमान के लिए
एक परिंदा , फलक के वीरां केलिये
ये शहर बौद्धिक नहीं माना जाता है यहाँ मध्यवर्गीय साहित्यिक लोग हैं जो तेल फुलेल लगा कर इन दिनों हर शाम I.M. A. हॉल के इर्दगिर्द दिखाई देते hain
Bareilly में जब २००७ की जनवेरी में पहली बार विजय तेंदुलकर साहब ka प्ले shakha ram book binder देखने को मिला तो एसा laga ki ये shahar भी अंगड़ाई ले रहा है है ..फिर सूरज का सातवां घोडा, घासीराम कोतवाल, और कई प्ले देखने को मिले दया दृष्टि ट्रस्ट का ये आफती शौख डॉ ब्रिजेश्वर सिंह से निकल कर पुरे ट्रस्ट पर हावी हो जाता है और जनवरी फेर्बरी में अब पूरी बरेल्लीय के sir chadh कर बोलता है मै ट्रस्ट में नहीं हूँ में तो एक दर्शक की भूमिका में प्ले देखने को डेली प्लान मैं रखता हूँ । सुबह अख़बार में पिछले दिन के प्ले के बारे में न्यूज़ पढ़कर शुरू करता हूँ और रात प्ले के गोरे काले पछ को विमर्श करते हुए ख़तम करता हूँ ...इस साल ''बाई से biscope , चेकव की दुनिया ,नमक मिर्च, ऐसा कहते हैं ,पार्क ,रूप अरूप आदि प्ले देखने को मिले अच्छा sound and light arrangment tha . makrand dshpandey yashpal sharma ,sadiya siddiqi , benjamin gilani aur ese kai chehare jine barson se t.v. per dekha hai saamne play main etne shashakt lage ki क्या कहने .....पर २००७,०८ और खास कर २००९ की तुलना मैं इस साल के प्ले दम तोड़ते नज़र आते हैं उम्मीद करते हैं की अगले साल बेहतर प्ले चुने जायेंगे .....अभी ''विजय तेंदुलकर का ''खामोश आदालत jaari है ''एक बेहतर प्ले हो सकता है ...पर उसदिन शायद मैं जिम कॉर्बेट मैं होऊं ....
कासिद kehte hain dakiye , POSTMAN ko )
kaasid ke aate aate khat ek aur lik rakhun
main jaanta hun vo jo likhenge jabav main ...
अगली पोस्ट जल्दी ही ..
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