yatra

Friday, July 17, 2020

लॉक्डाउन

           तवील सफ़र 

बीनाई को खा गयी आँखें

रस्ते के हम पत्थर ताकें 

झूल चुकी हैं थककर बाँहें

कहाँ कहाँ हम हाँथ फैलाएँ


कब तक यूँ ही चलते जाएँ .


मन बोझिल है तन है भारी

एक गठरी में गिरस्ती सारी 

नहीं पता कब तक पहुंचेगे

या बीच सफ़र में जाँ खो देंगे 


बंद पड़ी है दुनिया सारी 

नरक हो गयी ज़िम्मेदारी 

बीबी बच्चे कहाँ खपाएँ 

कब तक लाठी डंडे खाएँ 


पानी बचा नहीं बोतल में

ख़त्म हुआ जो था पोटल में

आँख भरी हाँथ ख़ाली है 

ख़ाली हाँथ भी क्या घर जाएँ


कब तक यूँ ही चलते जाएँ


इतने मील कैसे चल आए 

पाँव नहीं बिलकुल घबराए 

घबराए बागड़ बिल्लों से जो 

नाहक हम को रोके जायें


हर कोस पर नयी बलाएँ 

रोक रोक हाकिम समझाएँ 

ना समझें तो मार लगाएँ 

कब तक लातें गाली खाएँ


दूर दूर तक हैं सन्नाटे 

यहाँ वहाँ कुछ राशन बाँटे 

कुछ हम पगलों के नौहे गाएँ 

मेहनतकश क्यूँ हाँथ फैलाएँ


सब छोड़आए , कुछ लापाए 

सोच सोच कर , दिल घबराए 

बदन थक गया ,फ़ोन बिक गया

ज़िंदा हैं पर , कैसे घर बतलाएँ .


ताब नहीं पर बढ़ते जाएँ 

कब तक यूँ ही चलते जायें.


सुमति





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