ग़ज़ल
फ़क़त इतना गुमां दिल में लिए हूँ,
तेरी महफिल में सबसे कम पिए हूँl
ब जाहिर आशिकी होती भी कैसे,
नज़र के साथ होठों को सीये हूँl
ख्यालों ख्वाहिशों की कसमकश में
मैं रोना दोस्ती का भी लिए हूँl
ये अहसां दर्ज है हर्फ ए वफा मे,
तकादा तुम से अबतक कब किए हूँ
सुमति
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