आसान सी लगती
इस दुनिया में
कभी कभी इतनी मुश्किलें भी
आसानी से घर कर जाती हैं कि
पता ही नहीं लगता।
हंसती खेलती ज़िंदगी कब
दर्दनाक खेल बन जाती है
हम सोच भी नहीं सकते. .
एक छोटी सी सिंदूर की डिब्बी।
..... बा मुश्किल दस रुपये की ही तो होती है। .
........ पहुँच से कैसे दूर होजाती है.
कभी बिंदी के ढेरों पत्ते
और उन मैं अनगिनत बिन्दियो मे
एक बिंदी अपनी पसंद की
और कभी बिंदी ही बंद ।
कल जो मंदिर
हमारी हर मुश्किल का हल
देने का भरोसा देता था
एक झटके में
उस से ही भरोसा उठ जाता है।
कैसे दसियों साल बीत जाते हैं
पता नहीं चलता
और क्यों एक एक दिन काटना मुहाल हो जाता है.......
.. कभी खिलखिलाती हंसी बंद होने का नाम नहीं लेती
और क्यों अब आँखें है कि बही जाती हैं
तुम क्या हो..... कैसे हो.
यक़ीनन इन्सान नहीं
वो होते तो ऐसे बुरा हश्र न किया होता।
किस ग़लतफहमी में मैंने
तुम्हें सब कुछ माना और
अब जिस ओर नज़र जाती है
तुम्हारा झूठ दिखाई देता है।
झूठ
सब झूठ.... झूठ.... झूठ
इस दुनिया में
कभी कभी इतनी मुश्किलें भी
आसानी से घर कर जाती हैं कि
पता ही नहीं लगता।
हंसती खेलती ज़िंदगी कब
दर्दनाक खेल बन जाती है
हम सोच भी नहीं सकते. .
एक छोटी सी सिंदूर की डिब्बी।
..... बा मुश्किल दस रुपये की ही तो होती है। .
........ पहुँच से कैसे दूर होजाती है.
कभी बिंदी के ढेरों पत्ते
और उन मैं अनगिनत बिन्दियो मे
एक बिंदी अपनी पसंद की
और कभी बिंदी ही बंद ।
कल जो मंदिर
हमारी हर मुश्किल का हल
देने का भरोसा देता था
एक झटके में
उस से ही भरोसा उठ जाता है।
कैसे दसियों साल बीत जाते हैं
पता नहीं चलता
और क्यों एक एक दिन काटना मुहाल हो जाता है.......
.. कभी खिलखिलाती हंसी बंद होने का नाम नहीं लेती
और क्यों अब आँखें है कि बही जाती हैं
तुम क्या हो..... कैसे हो.
यक़ीनन इन्सान नहीं
वो होते तो ऐसे बुरा हश्र न किया होता।
किस ग़लतफहमी में मैंने
तुम्हें सब कुछ माना और
अब जिस ओर नज़र जाती है
तुम्हारा झूठ दिखाई देता है।
झूठ
सब झूठ.... झूठ.... झूठ
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home