yatra

Monday, July 27, 2009

खोखला सा घोसला

मेरी समझ मैं नहीं आता है कि ॥ ( वैसे सोचने पर रोक है )
फिर भी
...कब कैसे अपने हांतों से रेखाएं फिसल कर ..
पैरों से लिपट जाती हैं और
इर्द गिर्द बेबसी मे " ' '" " मैं अपने आप को खड़ा पाता हूँ ।

दोस्तों ने भी कई कयास लगाये ......////???
मैंने भी अपने ही बारे में कई बार सोचा
कई - कई बार सोचा पर....
..हर बार जब भी घूम कर अपनी ही
दुम को देखा है तो ....
यकीं नही हुआ कैसे ये टांगो के बीच

ख़ुद ba ख़ुद चली जाती है
और रिश्ते ...
.....bed के नीचे
....कुर्सी के peechhae

pattae को dhundhtae हैं
ठीक कहते हो दोस्त ...........
...
z.....zinda रहने के लिए
paltu hojaana jaruri hai
मत सोचो ...???
bilkul mat socho
कि ये कोई majburi है.

1 Comments:

Blogger VOICE OF MAINPURI said...

yatra ko rok kyun diya...?

September 29, 2009 at 11:44 AM  

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