yatra

Wednesday, July 11, 2012

रात के इस  पहर अकेला है  
कश्तियाँ ले चलो समुन्दर में 
चाँद को रौंद  कर  के आते हैं 
आसमां ताकते तो उमर गुजरी


सुमति


हर लिहाज से उम्दा  तू  मुझ से ठहरेगा 
फिर बता बीच  हमारे ये सिलसिला क्या है 
सुमति 




मेरी हस्ती के मिटने का सबब
 बनके जो आ जाओ कहीं भूले से ..

हर एक शाम मैं ने यूँ ही गुज़री है 
बे पुख्ता सी उमीद के साथ  

सुमति 



मुझे हर शाम 
ये एहसास घेर लेता है 
कि तमाम सर्द अंधेरों में पिन्हा
मेरा मुस्तकबिल
 काँप उठेगा जो कहेगा कोई
 कि
 तुम ने याद किया है मुझ को 

सुमति 



Friday, July 6, 2012

maslhat ka ye taqaza hai bhula do hum ko

  गम ए हयात का झगडा मिटा रहा है कोई 
  चले भी आओ की दुनिया से जा रहा है कोई 

  अज़ल से कह दो कि रुक जाये दो घड़ी के लियें,
         सुना है आने का वादा निभा रहा है कोई 
                                                                            
     वो इस नाज़ से बैठे हैं मेरी लाश के पास 
     जैसे रूठे हुए को मना रहा है कोई 
                                                                        
     पलट के आ न जाएँ मेरी साँसें 
   हसीं हांथों से मईयत सजा रहा है कोई